हनुमान आरती No Further a Mystery
हनुमान आरती No Further a Mystery
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↑ "विस्मृत हो चुके हैं भगवान शिव की आरती ओम जय जगदीश... here के रचयिता". बिज़नेस स्टैंडर्ड. ३० सितम्बर २०१३. अभिगमन तिथि १७ अप्रैल २०१४.
अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
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चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
भावार्थ – आपके हाथ में वज्र (वज्र के समान कठोर गदा) और (धर्म का प्रतीक) ध्वजा विराजमान है तथा कंधे पर मूँज का जनेऊ सुशोभित है।
अर्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
ढेर जानकारी खत्तिर उपयोग कय शर्त देखा जाय।
“भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।”
व्याख्या – मनरूपी दर्पण में शब्द–स्पर्श–रूप–रस–गन्धरूपी विषयों की पाँच पतवाली जो काई (मैल) चढ़ी हुई है वह साधारण रज से साफ होने वाली नहीं है। अतः इसे स्वच्छ करने के लिये ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’ की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात् भगवान् शंकर ही यहाँ गुरु–स्वरूप में वर्णित हैं–‘गुरुं शङ्कररूपिणम् ।‘ भगवान् शंकर की कृपा से ही रघुवर के सुयश का वर्णन करना सम्भव है।
भावार्थ – हे हनुमान जी ! यदि कोई मन, कर्म और वाणीद्वारा आपका (सच्चे हृदय से) ध्यान करे तो निश्चय ही आप उसे सारे संकटों से छुटकारा दिला देते हैं।
व्याख्या – मैं अपने को देही न मानकर देह मान बैठा हूँ, इस कारण बुद्धिहीन हूँ और पाँचों प्रकार के क्लेश (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश) तथा षड्विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर) से संतप्त हूँ; अतः आप जैसे सामर्थ्यवान् ‘अतुलितबलधामम्‘ ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम्‘ से बल, बुद्धि एवं विद्या की याचना करता हूँ तथा समस्त क्लेशों एवं विकारों से मुक्ति पाना चाहता हूँ।
“आपके उपदेश का विभीषण जी ने भली भांति पालन किया जिससे वे लंका के महाराजा बने, इस बात को सब संसार जानता है।”
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं – श्लोक अर्थ सहित
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